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स म॑र्मृजा॒न इ॑न्द्रि॒याय॒ धाय॑स॒ ओभे अ॒न्ता रोद॑सी हर्षते हि॒तः । वृषा॒ शुष्मे॑ण बाधते॒ वि दु॑र्म॒तीरा॒देदि॑शानः शर्य॒हेव॑ शु॒रुध॑: ॥

English Transliteration

sa marmṛjāna indriyāya dhāyasa obhe antā rodasī harṣate hitaḥ | vṛṣā śuṣmeṇa bādhate vi durmatīr ādediśānaḥ śaryaheva śurudhaḥ ||

Pad Path

सः । म॒र्मृ॒जा॒नः । इ॒न्द्रि॒याय॑ । धाय॑से । आ । उ॒भे इति॑ । अ॒न्तरिति॑ । रोद॑सी॒ इति॑ । ह॒र्ष॒ते॒ । हि॒तः । वृषा॑ । शुष्मे॑ण । बा॒ध॒ते॒ । वि । दुः॒ऽम॒तीः । आ॒देदि॑शानः । श॒र्य॒हाऽइ॑व । शु॒रुधः॑ ॥ ९.७०.५

Rigveda » Mandal:9» Sukta:70» Mantra:5 | Ashtak:7» Adhyay:2» Varga:23» Mantra:5 | Mandal:9» Anuvak:4» Mantra:5


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (मर्मृजानः) सर्वपूज्य (दुर्मतीः शुरुधः) दुष्टप्रकृतिवाले असुरों को (आदेदिशानः) शिक्षा देनेवाला (वृषा) आनन्द का वर्षक (उभे रोदसी) द्युलोक और पृथ्वीलोक दोनों के (अन्तर्हितः) मध्य में विराजमान (सः) वह परमात्मा (इन्द्रियाय) इन्द्रियों के (धायसे) धारण करनेवाले बल के लिये (आ हर्षते) सर्वत्र विराजमान है और (शुष्मेण) अपने बल से (वि बाधते) दुष्टों को पीड़ा देता है। (शर्यहेव) जैसे बाणों से योद्धा अपने प्रतिपक्षी को मारता है, उसी प्रकार परमात्मा दुराचारी और विघ्नकारी राक्षसों को मारता है ॥५॥
Connotation: - परमात्मा अपने सच्चिदानन्दरूप से सर्वत्रैव परिपूर्ण हो रहा है और वह अपनी दमनरूप शक्ति से दुष्टों को दमन करके सत्पुरुषों का उद्धार करता है ॥५॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (मर्मृजानः) सर्वपूज्यः (दुर्मतीः शुरुधः) दुष्टप्रकृतीनामसुराणां (आदेदिशानः) शिक्षकः (वृषा) आमोदवर्षकः (उभे रोदसी) द्यावापृथिव्योर्द्वयोर्लोकयोः (अन्तर्हितः) मध्ये विराजमानः (सः) स परमात्मा (इन्द्रियाय) इन्द्रियाणां (धायसे) धारणकर्त्रे बलाय (आ हर्षते) सर्वत्र विराजमानोऽस्ति। अथ च (शुष्मेण) शत्रुनाशकेन बलेन (वि बाधते) दुष्टान् पीडयति। (शर्यहेव) यथा योद्धा प्रतिपक्षस्थितं स्वशत्रुं हन्ति तथा परमेश्वरो दुराचारिविघ्नकारिराक्षसान् हिनस्ति ॥५॥